पुरातन भारतीय रसोई दर्शन - एक सस्टेनेबल मॉडल
आज पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है कि वो कौनसी शक्ति है जो कोरोना संकट में भी भारत दूसरे देशो की बजाय अच्छी दशा में है। भारत में सिर्फ उन्ही जगहों पर कोरोना का प्रभाव है जो भारतीय रसोई को भूल कर मॉडर्न रसोई की तरफ चले गए। गांव आज भी ज्यादा सुरक्षित है। गांव में रहने वालो की रोग प्रतिरोधक क्षमता शहर वालो से अधिक है। इस समय ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमने क्या बदला। पूरातन रसोई घर के बाहर हुआ करती थी। हमारा भोजन जैविक खेती पद्दति से आया करता था। केमिकल का उपयोग ना ही हम जानते थे ना ही समझना चाहते थे। हमारा दूध घर में रहने वाली गाय से मिल जाया करता था। उसी दूध से छाछ, घी, मक्खन आदि की आवश्यकता पूरी होती थी। घर के चौक में पड़ी घट्टी हमें आटा, दालें आदि उपलब्ध कराता था। घर के बाहर पड़ी बाल्टी हर आने वाले को स्वच्छ हो कर प्रवेश करने पर मजबूर कर देता था। पुरातन रसोई में धातु ज्ञान का भी विशेष महत्व था। हमारे पीने के पानी के पात्र तांबे के हुआ करते थे। जो पानी को शुद्ध किया करता था। हमारे भोजन पकाने के पात्र पीतल एवं लोहे के बने होते थे।जो भोजन के न्युट्रिशन